A view towards innocent life
राम, मैं रावण भी, मैं कल्याण, मैं अभिशाप भी, मैं
जहाँ ढुंढू खुद को वहाँ पाऊँ भी, मैं जो हूं नही वो होऊँ भी, मैं
कभी मिलू तो खो जाऊँ, मैं कभी ढुंढू तो मिलू भी, मैं
इस रक्त को वक्त के लिए सीचूं भी, मैं तो कैसे पाऊँ 'खुद' को, मैं ।
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