जीवित जग
जीवन
जीने का ढंग
ज़िंदगी
ढंग
आज पहचान बेढंगी
आज ये होता
यादें होती
ये जुड़ी होती
बस यही ज़िंदगी होती
पर अहसास भविष्य मे नहीं होता
ये सिर्फ़ आज से वास्ता रखता
मन आसमान छूता
आत्मा सयंम रखती
इंद्रियाँ परमात्मा का अहसास कराती
ब्रह्मांड शून्य होता
तब , शायद लमाम होती
आज़ादी की ज़रूरत नहीं
हमारी सोच आज़ाद होती
ज़िंदगी हमारे साथ होती ।