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Saturday 22 April 2017

लगाम

जीवित जग
जीवन
जीने का ढंग
ज़िंदगी

ढंग
आज पहचान बेढंगी
आज ये होता
यादें होती

ये जुड़ी होती
बस यही ज़िंदगी होती
पर अहसास भविष्य मे नहीं होता
ये सिर्फ़ आज से वास्ता रखता

मन आसमान छूता
आत्मा सयंम रखती
इंद्रियाँ परमात्मा का अहसास कराती
ब्रह्मांड शून्य होता

तब , शायद लमाम होती
आज़ादी की ज़रूरत नहीं
हमारी सोच आज़ाद होती
ज़िंदगी हमारे साथ होती ।

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