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Friday 24 February 2017

मुलाक़ात

हम फिर मिलेंगे
हम फिर गलें लगेंगे
मुस्कराते हुए
गुनगुनाते हुए

एक बार फिर
हम अनजान होंगे
जब देखेंगे , हम फिर
मुस्कुराएँगें

हम जिएँगे
यादों के अहसास के सहारे नहीं
बस, तुमसे फिर मिलेंगे
कौशिश से नहीं

ऐसा कुछ हुआ
ये विडंबना नही है
एक अहसास हुआ
इसलिए हम मिले

मेरी कौशिश थी
मेरी ही तक़दीर
शायद कोई बात भी थी
दूरी , बस एक लकीर

मुस्कुराएँगें
आंखो की नमी के साथ
शांत चित्त के साथ
जब हम फिर मिलेंगे ।

मुलाक़ात

हम फिर मिलेंगे
हम फिर गलें लगेंगे
मुस्कराते हुए
गुनगुनाते हुए

एक बार फिर
हम अनजान होंगे
जब देखेंगे , हम फिर
मुस्कुराएँगें

हम जिएँगे
यादों के अहसास के सहारे नहीं
बस, तुमसे फिर मिलेंगे
कौशिश से नहीं

ऐसा कुछ हुआ
ये विडंबना नही है
एक अहसास हुआ
इसलिए हम मिले

मेरी कौशिश थी
मेरी ही तक़दीर
शायद कोई बात भी थी
दूरी , बस एक लकीर

मुस्कुराएँगें
आंखो की नमी के साथ
शांत चित्त के साथ
जब हम फिर मिलेंगे ।

Sunday 19 February 2017

प्यार

एक शब्द
विचारों का
एक लफ्ज
अहसास का

एक नाम
इच्छाओं का
एक काम
स्वार्थो का

एक ज़रूरत
इंसान की
एक मोहब्बत
विश्वास की

सार्थक होगा
तभी अर्थ होगा
सच्चा होगा
तभी अमर होगा ।

प्यार

एक शब्द
विचारों का
एक लफ्ज
अहसास का

एक नाम
इच्छाओं का
एक काम
स्वार्थो का

एक ज़रूरत
इंसान की
एक मोहब्बत
विश्वास की

सार्थक होगा
तभी अर्थ होगा
सच्चा होगा
तभी अमर होगा ।

Monday 13 February 2017

कौशिश

इसे लगने दो
इसे प्यासा मरने दो
प्यास की क़ीमत समझने दो
इसे पागल रहने दो

प्यार मंज़िल नहीं
ये राह है
दिल राही नहीं
जरिया है

ये पागल नही करता
ये तो बस रखने का इंतेहान लेता
ये किसी दिल को पाना नहीं चाहता
ये बस उसमें डूबना चाहता

एक झलक पाने को
कितनी मेहनत करता
गले लगाने को
क्यों मरता

ये पागलपंती नहीं है
ये तो उसमें बस जाने की कौशिश है
ये अंत नहीं है
ये हमारा प्यारा घर हैं ।

कौशिश

इसे लगने दो
इसे प्यासा मरने दो
प्यास की क़ीमत समझने दो
इसे पागल रहने दो

प्यार मंज़िल नहीं
ये राह है
दिल राही नहीं
जरिया है

ये पागल नही करता
ये तो बस रखने का इंतेहान लेता
ये किसी दिल को पाना नहीं चाहता
ये बस उसमें डूबना चाहता

एक झलक पाने को
कितनी मेहनत करता
गले लगाने को
क्यों मरता

ये पागलपंती नहीं है
ये तो उसमें बस जाने की कौशिश है
ये अंत नहीं है
ये हमारा प्यारा घर हैं ।

Wednesday 8 February 2017

सच्चाई

हम है
या दिखावा है
अगर सच्चाई जानूँ
तो क्यों किसी की मानूँ

साथ जीना
या सिर्फ़ होना
अगर सच्चाई जानूँ
तो क्यों किसी की मानूँ

हम है
तो क्यों चिंता है
दुसरो के होने की
उनसे ज़्यादा करने की
अगर सच्चाई जानूँ
तो क्यों किसी की मानूँ

साथ जीना
था, सिर्फ़ बहाना
रिस्तो का
तो क्या मतलब है, परिचय का
अगर सच्चाई जानूँ
तो किसी की मानूँ ।

सच्चाई

हम है
या दिखावा है
अगर सच्चाई जानूँ
तो क्यों किसी की मानूँ

साथ जीना
या सिर्फ़ होना
अगर सच्चाई जानूँ
तो क्यों किसी की मानूँ

हम है
तो क्यों चिंता है
दुसरो के होने की
उनसे ज़्यादा करने की
अगर सच्चाई जानूँ
तो क्यों किसी की मानूँ

साथ जीना
था, सिर्फ़ बहाना
रिस्तो का
तो क्या मतलब है, परिचय का
अगर सच्चाई जानूँ
तो किसी की मानूँ ।

Friday 3 February 2017

आशा

कुछ हैं , होने को
हाँ तभी तो है 'आशा ' कुछ करने को

ज़िंदगी की रफ्तार में
हैवानियत की साज़ में
जिसे गाए जा रहा वो
अपनी ही आवाज़ में
है लिखता गीत वो
अपने ही अंदाज़ में
सब भूल बैठा वो
अपने ही स्वार्थ में

हाँ तभी तो है , यहाँ कुछ होने को ।

आशा

कुछ हैं , होने को
हाँ तभी तो है 'आशा ' कुछ करने को

ज़िंदगी की रफ्तार में
हैवानियत की साज़ में
जिसे गाए जा रहा वो
अपनी ही आवाज़ में
है लिखता गीत वो
अपने ही अंदाज़ में
सब भूल बैठा वो
अपने ही स्वार्थ में

हाँ तभी तो है , यहाँ कुछ होने को ।