My Blog List

Thursday 27 October 2016

यादें

यादें घर कर लेती हैं
प्यारे से घर में
इस अनछूए से घर में
कुछ यादें बस जाती हैं घर में
तब अपना लगता हैं घर

कभी खाली सा लगने लगता हैं घर
जब यादें याद छोड़ जाती हैं घर में
क्योंकि याद घर कर लेती हैं प्यारे से घर में

कभी कुछ बस जाता हैं मन में
जो रच जाता है तन में
यही याद है प्यारी सी यादें में
जो रह जाती है घर में ।

यादें

यादें घर कर लेती हैं
प्यारे से घर में
इस अनछूए से घर में
कुछ यादें बस जाती हैं घर में
तब अपना लगता हैं घर

कभी खाली सा लगने लगता हैं घर
जब यादें याद छोड़ जाती हैं घर में
क्योंकि याद घर कर लेती हैं प्यारे से घर में

कभी कुछ बस जाता हैं मन में
जो रच जाता है तन में
यही याद है प्यारी सी यादें में
जो रह जाती है घर में ।

Sunday 23 October 2016

प्रकृति

मैं प्यार हूँ
तेरा
तू  अस्तित्व हैं
मेरा

ख्वाहिशें भरी ज़िंदगी
हैं ,मेरी बंदगी
जरूरतो संग,ज़िंदगी
हैं , मेरी प्रकृति

फिर भी एक ख्वाहिश हैं मेरी
हर साँस हो तेरी
चाहें विपक्ष हो दुनिया सारी
मुझे परवाह नहीं, मेरी

तुझ में बस जाऊँ
ये चाह नहीं
दिली ख्वाहिश हैं ,मेरी
चाहें फिर जुदा हो जाऊँ

ये भविष्य नहीं
पर
विश्वास हैं
मेरा

प्रकृति

मैं प्यार हूँ
तेरा
तू  अस्तित्व हैं
मेरा

ख्वाहिशें भरी ज़िंदगी
हैं ,मेरी बंदगी
जरूरतो संग,ज़िंदगी
हैं , मेरी प्रकृति

फिर भी एक ख्वाहिश हैं मेरी
हर साँस हो तेरी
चाहें विपक्ष हो दुनिया सारी
मुझे परवाह नहीं, मेरी

तुझ में बस जाऊँ
ये चाह नहीं
दिली ख्वाहिश हैं ,मेरी
चाहें फिर जुदा हो जाऊँ

ये भविष्य नहीं
पर
विश्वास हैं
मेरा

Wednesday 19 October 2016

परिचय

हम जो  हैं
वो हमारा स्वरूप है
हम जो आज हैं
वो कल का रूप हैं।

अच्छाई
बुराई
हमारी ही इकाई
जो हमने ही बनाई

हम ग़लत हैं
कहीं ना कहीं
ताकि सच का अहसास हो
अच्छाई का आभास हो

जो गुण हैं हम में
जो अवगुण हैं हम में
वो मात्र रूप नहीं
परिचय हैं हमारा

परिचय

हम जो  हैं
वो हमारा स्वरूप है
हम जो आज हैं
वो कल का रूप हैं।

अच्छाई
बुराई
हमारी ही इकाई
जो हमने ही बनाई

हम ग़लत हैं
कहीं ना कहीं
ताकि सच का अहसास हो
अच्छाई का आभास हो

जो गुण हैं हम में
जो अवगुण हैं हम में
वो मात्र रूप नहीं
परिचय हैं हमारा

Tuesday 11 October 2016

विकराल

ये रुप नहीं
पैमाना हैं
उसका नहीं
हमारा हैं

उत्सुकता से देखता रहूँ
या सोचता रहूँ
ये सीमित होगा
क्योंकि अंर्तःमन अभी नहीं जगा

सोचता रहूँ
या निश्चिंत रहूँ
मैं वहीं हूँ
क्योंकि मैं अचेत हूँ

इच्छा नहीं
कोशिश चाहिए
ज़िंदा रहने की नहीं
रखने की हिम्मत चाहिए

खुद को नहीं
मन को
विवशता मे नहीं
चंचलता में

ये सीमित नहीं
असीमित हैं
विवशता में नहीं
चंचलता में हैं

इसका रुप नहीं
ये तो हमारा ढंग हैं
ये हैं नहीं
यही तो हमारा मन हैं

विकराल

ये रुप नहीं
पैमाना हैं
उसका नहीं
हमारा हैं

उत्सुकता से देखता रहूँ
या सोचता रहूँ
ये सीमित होगा
क्योंकि अंर्तःमन अभी नहीं जगा

सोचता रहूँ
या निश्चिंत रहूँ
मैं वहीं हूँ
क्योंकि मैं अचेत हूँ

इच्छा नहीं
कोशिश चाहिए
ज़िंदा रहने की नहीं
रखने की हिम्मत चाहिए

खुद को नहीं
मन को
विवशता मे नहीं
चंचलता में

ये सीमित नहीं
असीमित हैं
विवशता में नहीं
चंचलता में हैं

इसका रुप नहीं
ये तो हमारा ढंग हैं
ये हैं नहीं
यही तो हमारा मन हैं

Monday 10 October 2016

समाज

जीव की जरुरत
भगवान की मोहब्बत
हमारी मनंत
कैसे हो इज़्ज़त

जीना था
इसलिए जरुरत थी
जीवन अपना था
इसलिए साथ की जरूरत थी

यह विचार था
आपस मे बांधना था
यही रचना थी
क्योंकि मजबूरी थी

समाज था
ताकि परिवेश अपना हो
विचारों का झुंड था
ताकि समाज अपना हो

स्वार्थ ने धरना दिया
हमने इसे बाँट दिया
जिसे धर्म का नाम दिया
और उसे भी कर्मो में बाँट दिया

आज ये समाज नहीं हैं
सिर्फ़ स्वार्थ हैं
क्योंकि ये उसकी परिभाषा नहीं हैं
आज हम फिर अकेले हैं

समाज

जीव की जरुरत
भगवान की मोहब्बत
हमारी मनंत
कैसे हो इज़्ज़त

जीना था
इसलिए जरुरत थी
जीवन अपना था
इसलिए साथ की जरूरत थी

यह विचार था
आपस मे बांधना था
यही रचना थी
क्योंकि मजबूरी थी

समाज था
ताकि परिवेश अपना हो
विचारों का झुंड था
ताकि समाज अपना हो

स्वार्थ ने धरना दिया
हमने इसे बाँट दिया
जिसे धर्म का नाम दिया
और उसे भी कर्मो में बाँट दिया

आज ये समाज नहीं हैं
सिर्फ़ स्वार्थ हैं
क्योंकि ये उसकी परिभाषा नहीं हैं
आज हम फिर अकेले हैं