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Tuesday 11 October 2016

विकराल

ये रुप नहीं
पैमाना हैं
उसका नहीं
हमारा हैं

उत्सुकता से देखता रहूँ
या सोचता रहूँ
ये सीमित होगा
क्योंकि अंर्तःमन अभी नहीं जगा

सोचता रहूँ
या निश्चिंत रहूँ
मैं वहीं हूँ
क्योंकि मैं अचेत हूँ

इच्छा नहीं
कोशिश चाहिए
ज़िंदा रहने की नहीं
रखने की हिम्मत चाहिए

खुद को नहीं
मन को
विवशता मे नहीं
चंचलता में

ये सीमित नहीं
असीमित हैं
विवशता में नहीं
चंचलता में हैं

इसका रुप नहीं
ये तो हमारा ढंग हैं
ये हैं नहीं
यही तो हमारा मन हैं

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