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Monday 10 October 2016

समाज

जीव की जरुरत
भगवान की मोहब्बत
हमारी मनंत
कैसे हो इज़्ज़त

जीना था
इसलिए जरुरत थी
जीवन अपना था
इसलिए साथ की जरूरत थी

यह विचार था
आपस मे बांधना था
यही रचना थी
क्योंकि मजबूरी थी

समाज था
ताकि परिवेश अपना हो
विचारों का झुंड था
ताकि समाज अपना हो

स्वार्थ ने धरना दिया
हमने इसे बाँट दिया
जिसे धर्म का नाम दिया
और उसे भी कर्मो में बाँट दिया

आज ये समाज नहीं हैं
सिर्फ़ स्वार्थ हैं
क्योंकि ये उसकी परिभाषा नहीं हैं
आज हम फिर अकेले हैं

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