जीव की जरुरत
भगवान की मोहब्बत
हमारी मनंत
कैसे हो इज़्ज़त
जीना था
इसलिए जरुरत थी
जीवन अपना था
इसलिए साथ की जरूरत थी
यह विचार था
आपस मे बांधना था
यही रचना थी
क्योंकि मजबूरी थी
समाज था
ताकि परिवेश अपना हो
विचारों का झुंड था
ताकि समाज अपना हो
स्वार्थ ने धरना दिया
हमने इसे बाँट दिया
जिसे धर्म का नाम दिया
और उसे भी कर्मो में बाँट दिया
आज ये समाज नहीं हैं
सिर्फ़ स्वार्थ हैं
क्योंकि ये उसकी परिभाषा नहीं हैं
आज हम फिर अकेले हैं
No comments:
Post a Comment