कुछ ना
हो बस काम
धुरी हो मोम
फिर हो कोई नाम
ज़रूरत हो
तो बस साथ की
वो भी खुद की
फिर चाहे मंज़िल हो सोच की
बढ़ना हो एक शर्त पे
रुकना ना पड़े कही पे
चाहे लाइन टूटी हो
पर ज़िंदगी साथ हो
दूरी हो चाहे मंज़िल से
पर दूरियाँ ना हो ज़िंदगी से
क्योंकि धुरी है इंसानियत से
No comments:
Post a Comment