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Friday 16 December 2016

बड़त (Growth)

एक दूरी रह गई
एक फासला बन गया
वो लगन गई
क्योंकि ढलते दिन के साथ , मैं ढल गया

ये सच हैं
जो मुझसे हैं
ये चाह नहीं हैं मेरी
पर इससे विपरीत कौशिश भी नहीं मेरी

वो पल मुझे गवाँने नहीं हैं
वो बाते किसी को बतानी नहीं हैं
ये कहानी मुझे पूरी नहीं करनी हैं
मुझे आज भी तेरे साथ जीना हैं

मुझे कोई फल नहीं चाहिए
मुझे कोई अर्थ नहीं चाहिए
मुझे किसी के भाव नहीं चाहिए
मैं तेरा हूँ ,बस यहीं अंत चाहिए

मैं एक माध्यम ज़रूर हूँ
मैं एक कर्ता ज़रूर हूँ
मैं कर्म का कारण ज़रूर हूँ
पर मैं सिर्फ़ तुझ से हूँ

कुछ समेटे हुए पल हैं , मेरे
कुछ बातें हैं हमारी
कुछ यादें हैं हमारी
जो अब मुस्कान हैं मेरी

मुझे गर्व हैं मुझपें
मैंने उसे चुना
आज कुछ हैं मुझमें
क्योंकि उसने मुझे बुना ।

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