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Thursday 29 September 2016

एक दोस्त

अंधेरा पसरा
डर हुआ गहरा
अब नहीं रहा
उजाले का पहरा

ये था
या अहसास था
उजाले का
या उसके साथ का

एक आहट थी
एक आवाज़ थी
जो साथ थी
अब एक याद हैं

एक रिश्ता था
सच्चा था
अब नहीं हैं
उसका सिर्फ़ अहसास हैं

ये तो एक बहाना हैं
तुझे तो जगाना हैं
नींद से नहीं
सपनों से बाहर लाना हैं

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