ये हमारा स्वरुप हैं
समाज के प्रति
या समाज का रुप हैं
हमारे प्रति
हम जैसे हैं
समाज भी वैसा हैं
ये सिर्फ़ घेराव हैं
हमारे विचारों का
हम माघ्यम हैं
विचारों के
एक अंश भर हैं
समाज के
हम बुनकर नहीं हैं
हम सिर्फ़ कपास हैं
ये मेरा प्रभाव नहीं हैं
ये हमारा हैं
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